समसामयिक 

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•••माफ कीजिए मैं सकारात्मक नहीं हो सकता

वीरेश कुमार सिंह 

कोविड की चहुंदिश तबाही के आलम में आजकल एक अजीब तरह का जुमला ट्रेंड करने की कोशिश की जा हरही है-‘सकारात्मक रहिये’, ‘अच्छा देखिए अच्छा सोचिये, सब कुछ अच्छा नज़र आएगा’। बताने की आवश्यकता नहीं है कि ये अपील करने वाले कौन लोग होंगे! सरकार भी मीडिया को निर्देश दे चुकी है कि निगेटिव खबरें न दिखाई जाएं।

हम भी चाहते हैं कि सकारात्मक हुआ जाए लेकिन जब घर के आंगन में अपने किसी परिजन की लाश पड़ी हो जिसकी आंखों ने इलाज, दवा, बेड को खोजते हुए और लाचारी में असमय इस संसार से विदा होने की शिकायत करते हुए दिल धड़कना बन्द होने के बाद भी बंद होने से मना कर दिया हो तब क्या वजह हो सकती है कि सकारात्मक हुआ जाए? क्या यह सोच कर की चलो पुराना शरीर छूटा, अब नया जन्म मिलेगा? बाल गोबिन भगत जैसा ‘विरक्त सांसारिक’ करोड़ों में ही कोई एक होता है, ऐसे लोग अपवाद कहलाते हैं और अपवाद कहानियों में भले अच्छे लगें पर कभी भी व्यवहारिक आदर्श नहीं बनाए जाते। 

नदियों में लावारिस तैरती लाशें और उनको नोंच रहे जानवरों को देखकर मन में जुगुप्सा ही पैदा हो सकती है। जेहन में सवाल ही कौंध सकते हैं कि आखिर ये बदनसीब कौन हैं जिन्हें अंतिम क्रिया के लिए लकड़ी तक मयस्सर न हो सकी! 

जब आप कंधे पर, साइकल पर, ऑटो में लाश ढोने को मजबूर हों क्योंकि एम्बुलेंस उपलब्ध नहीं है और अचानक पता चले कि सत्ता में बैठा कोई व्यक्ति दर्जनों एम्बुलेंस अपने घर में रख कर सड़ा रहा है तो क्या गाली देने और उसे कोसने की जगह सकारात्मक होने की कोशिश करेंगे?

अस्पतालों के अभाव में जब आपको सड़क किनारे, पेड़ के नीचे या खुले आसमान को ताकते हुए इलाज कराने पर मजबूर होना पड़े और अपने-आपको प्रधान सेवक बताने वाला 20 हज़ार करोड़ से सेंट्रल ‘विष्ठा’ बनवा रहा हो और आपसे मन की बकवास में धैर्य रखने को कह रहा हो तो कैसा महसूस करेंगे? यकीन मानिए उस समय आप सकारात्मक तो कतई नहीं सोचेंगे।

जब रोजगार छिन रहे हों, दो जून की रोटी पर संकट छाया हो, लोकतंत्र की बात करने वालों को जेल में डाल कर प्रताणित किया जा रहा हो, बिना बात के आपका पिछवाड़ा पुलिस लाल कर रही हो, मदद के नाम पर दो-पांच किलो राशन देकर सरकारें अपना पल्ला झाड़ ले रही हों, जनता की लाशों पर लोकतंत्र का साम्राज्य खड़ा किया जा रहा हो तो मानवीय संवेदना से हीन व्यक्ति ही सकारात्मक रह सकता है। 

माफ कीजिये मैं सकारात्मक नहीं हो सकता।

@ Veeresh Kumar

-वीरेश कुमार सिंह 

सम्पादक 

प्रेरणा-अंशु

8979303333

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