किसकी साजिश का परिणाम था पंतनगर गोलीकाण्ड…? (भाग-तीन)

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इतिहास के पन्नों से…..

पड़ताल…भाग तीन

किसकी साजिश का परिणाम था पंतनगर गोलीकाण्ड…?

-रूपेश कुमार सिंह

13 अप्रैल, 1978 को हुए गोलीकाण्ड से एक सप्ताह पहले कुलपति डॉ धरमपाल सिंह ने पंतनगर कर्मचारी संगठन के तत्कालीन अध्यक्ष सी0बी0 सिंह, महामंत्री ए0सी0 कुलश्रेष्ठ सहित कई नेतृत्वकारियों को नौकरी से निकाल दिया। इन्हें पंतनगर कैम्पस से बाहर कर दिया गया। पुलिस नेताओं की धरपकड़ कर रही थी। घटना के दिन संगठन के सहमहामंत्री एस क्यू शफीक और संगठन के कोषाध्यक्ष शमीम अहमद सहित नौ साथी जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे।

बताया जाता है कि उस समय मजदूरों की दशा बहुत ही दयनीय थी। रहने की कोई सुविधा नहीं थी। नदी के किनारे मजदूर छोटी-छोटी झोपड़ी बनाकर रहते थे। डायरिया, मलेरिया, टायफाइड का कहर था। झोपड़ी में रहने का भी विवि प्रशासन किराया वसूलता था। स्वास्थ्य की सुविधा उपयुक्त नहीं थी। 12-14 घंटे काम लिया जाता था। इसका ही परिणाम था कि व्यापक पैमाने पर मजदूर और कर्मचारी एकजुट हुए और पंतनगर कर्मचारी संगठन का ट्रेड यूनियन के तहत पंजीकरण हुआ।

घटना के बाद संगठन के समर्थन में बड़े पैमाने पर विवि के छात्र, अध्यापक व छोटे अधिकारी भी खुलकर आन्दोलन में शामिल हो गये। उग्र आन्दोलन के चलते उत्तर प्रदेश सरकार को एकल जांच आयोग का गठन करना पड़ा। हाईकोर्ट के पूर्व जज गुरूशरण लाल श्रीवास्तव ने शासन को 27 फरवरी 1981 को अपनी जांच रिपोर्ट दी। लगभग एक साल लटकाये रखने के बाद 18 जनवरी 1982 को जांच रिपोर्ट विधानसभा पटल पर रखी गयी। उस समय विश्वनाथ प्रताप सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। आरोप है कि न सिर्फ जांच रिपोर्ट को दबाया गया, बल्कि दोषी कुलपति व अन्य को राजनीतिक संरक्षण दिया गया। किसी भी दोषी पर कोई मुकदमा दर्ज नहीं किया गया और न ही कोई कार्यवाही की गयी। घायल 40 मजदूरों को जरूर जेल भेज दिया गया। 14 साल बाद वे मजदूर दोष मुक्त साबित हुए। लेकिन दोषी कौन था, उसका पता आज तक नहीं चला।

क्या कहती है जस्टिस श्रीवास्तव की जांच आख्या…

लगभग तीन वर्ष के बाद एक सदस्यीय जांच आयोग ने 136 पेज की रिपोर्ट शासन को सौपी। अन्तिम निष्कर्ष का सार निम्नांकित है-

– कर्मचारियों का 13 अप्रैल 1978 का आन्दोलन उग्र हो गया था और उनके द्वारा ऐसी स्थिति पैदा कर दी गयी जिसके कारण पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा।

– डॉ धरम पाल सिंह, तत्कालीन कुलपति का दृष्टिकोण उचित नहीं था और असंतुष्ट लोगों की भावनाओं को वह नियंत्रित नहीं कर पाये। उनके द्वारा बुद्धिमानी प्रदर्शित नहीं की गई और जाति का समर्थन प्राप्त करने की चेष्टा से स्थिति सुधरने के बजाय बिगड़ती गयी।

-घटना के दिन के पी सिंह, तत्कालीय अतिरिक्त जिलाधिकारी और एस एन प्रसाद अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक पंतनगर और मटकोटा में नहीं थे, यदि वे मौके पर होते तो घटना टल सकती थी।

– मान सिंह कोरंगा, परगनाधिकारी, जिन्होंने गोली चलाने का आदेश दिया था, का यह कथन सही नहीं था कि उन्होंने गोली चलवाने से पहले लाउडस्पीकर से चेतावनी दी थी।

– शिवराज सिंह सहायक सेनानायक, पी ए सी असंतुलित बल प्रयोग के दोषी थे। गोली चलवाने के बाद तितर-बितर भीड़ का पीछा किया गया और कालोनियों में घुसकर गोली चलायी गयी, जो अनावश्यक थी।

जांच रिपोर्ट में कुलपित डॉ धरमपाल सिंह की प्रशासनिक अक्षमता को मुख्य रूप से उत्तरदायी माना गया। अगस्त 1978 को उन्होंने भारी जन दबाव में आकर अपना इस्तीफा जरूर दिया, लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्यवाही नहीं की गयी। न ही अन्य दोषियों के खिलाफ मुकदमा चला। बाद में सहायक कुलपति डॉ के जी गोलाकोटा के साथ कर्मचारी संगठन की कई दौर की बातचीत हुई। 1982 में लगभग चार हजार पांच सौ मजदूर और कर्मचारी नौकरी पर नियमित हुए और अन्य सुविधाएं भी मिलीं। जिसके बाद आन्दोलन समाप्त हुआ। लेकिन दर्द और तमाम अनसुलझे सवाल आज भी जिन्दा हैं।

ए0सी0 कुलश्रेष्ठ

आजाद भारत में ट्रेड यूनियन द्वारा मजदूरों का यह पहला आन्दोलन था, जो स्वस्फूर्त होने के बावजूद बहुत आक्रामक और व्यापक था। जिस क्रूरता से दमन किया गया, उसका उदाहरण भी इतिहास में कम ही मिलता है। जब 100 साल बाद ब्रिटिश सरकार को जलियांवाला बाग काण्ड के लिए माफी मांगनी चाहिए, तब भारत सरकार, उत्तर प्रदेश सरकार और पंतनगर विवि प्रशासन को भी अफसोस जाहिर करते हुए तत्कालीन सरकार की गलती माननी चाहिए। जिस ठेका प्रथा के खिलाफ और न्यूनतम सुविधाओं के लिए कानूनी जंग में मजदूरों ने 1978 में अपनी जान की बाजी लगायी, आज उसी पंतनगर में मजदूर बदहाल हैं। कमोवेश स्थिति 1978 जैसी ही हो गयी है। पूरे देश में कर्मचारियों और मजदूरों के खिलाफ षड़यंत्र में देश की सरकारें एकमत हैं। पूँजीकेन्द्रित व्यवस्था में बराबरी की बात बेईमानी है। जांच आयोग की सिफारिशों को दरकिनार कर उन्हें कूड़े के ढेर में डाल दिया गया। संगठन को आज पुनः मजबूत करने की जरूरत  है।’’
-ए0सी0 कुलश्रेष्ठ
तत्कालीन महामंत्री
पंतनगर कर्मचारी संगठन

समाप्त

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