बंगाली समाज को कब तक गुमराह करते रहेंगे मंत्री जी???

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एन. आर. सी.  छोड़ो, बंगालियों को एस. सी. का दर्जा कब दिलवा रहे हो, यह बताओ?

-रूपेश कुमार सिंह
     भोली-भाली जनता को बरगलाना, भरमाना और उकसाना आज की राजनीति का फंड़ा है। हुजूम के बीच खड़े होकर कोई नेता यह कहे कि ‘‘ऐसा नहीं हुआ तो मैं अगला चुनाव नहीं लडूंगा, वैसा नहीं हुआ तो मैं राजनीति से सन्यास ले लूंगा।’’ मौजूदा राजनीति में यह वाक्य सबसे बड़ा झूठ है, महज एक जुमला है। बचपन में कहीं पढ़ा था, ‘‘झूठ बोलने वाले से ज्यादा गुनहगार सुनने वाला है और सुनने वाले से ज्यादा गुनहगार झूठ को बर्दाश्त करने वाला है।’’ झूठ और नेताओं की चालबाजी को न समझना ही जनता की सबसे बड़ी भूल है।

     आजाद भारत के लोग 70 साल में भी राजनीतिक नहीं बन सके हैं, जिस कारण जुमलों के सहारे लोकतंत्र ढोया जा रहा है। आदरणीय शिक्षा मंत्री अरविन्द पाण्डेय जी मैं एक बार फिर आपके सार्वजनिक झूठ और राजनीतिक पैंतरेबाजी को पचा नहीं पा रहा हूं, इसलिए कुछ सवाल करना जरूरी समझता हूं। आपकी विधानसभा का सचेत नागरिक और पत्रकार होने के नाते मेरा यह दायित्व भी है कि जब-जब आप कुछ डगमगाते हुए दिखें तो मैं सवाल करूं। हालांकि आपने मेरे पूर्व के सवालों पर आज तक कोई जवाब नहीं दिया, मुझे बुरा नहीं लगा। आपकी अपनी व्यस्तता रही होगी। मुझ पर बदले की भावना से आपने कोई खिसियानी कार्यवाही नहीं की, इसके लिए मैं आपका आभारी हूं। जब प्रदेश के मुखिया किसी युवा/छात्र की जरा सी गलती के लिए उसके खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकते हैं, तो ऐसे में आपका मेरे प्रति उदार रहना मुझे पसंद आया। मुझे उम्मीद है कि इस बार आप जवाब जरूर देंगे।

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     एन. आर. सी. के मुद्दे पर आपने दिनेशपुर में कुछ रोज पहले बंगाली समाज को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘बंगाली हिन्दू एन. आर. सी. से प्रभावित नहीं होंगे। यदि हुए तो आप अगला चुनाव नहीं लड़ेंगे और राजनीति से भी सन्यास ले लेंगे।’’ लोगों की तालियां और कोरी वाहवाही लूटने के लिए यह जुमला सटीक है, लेकिन आपकी बात तथ्यपरक, कानूनी और न्यायसंगत नहीं है।

जरा निम्न बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित कीजिए-

  • एन. आर. सी. का संचालन सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशानुसार चल रहा है, उसमें केन्द्र और राज्य सरकार का कोई सीधा हस्तक्षेप नहीं है।
  • भाजपा और केन्द्र सरकार के एजेंडा अनुसार पूरे देश में सितम्बर 2020 तक एन0आर0सी0 लागू कराना शामिल है।
  • नागरिकता साबित करने की बारी आएगी तो सिर्फ मुसलमानों को ही अपने प्रपत्र नहीं दिखाने होंगे, हर जाति वर्ग को नागरिकता साबित करनी होगी।
  • यदि असम के अनुरूप 1971 का प्रावधान रखा जाता है, तो देश के आदिवासी, वन गुज्जर, जनजाति, पिछड़े, दलित, भूमि हीन, बंगाली आदि प्रभावित होंगे।
  • देश में कानून सबके लिए बराबर है, इसलिए यह कहना कि सिर्फ मुसलमानों और रोहिंग्या मुसलमानों पर आंच आएगी, गलत है। नियम के बाहर जो भी होगा वो प्रभावित होगा, चाहे वो हिन्दू बंगाली हो या और कोई।
  • सनद रहे असम में उन्नीस लाख पचास हजार लोग जो एन0आर0सी0 से बाहर हैं, उनमे 12 लाख के करीब हिन्दू और असम के आदिवासी मूल निवासी भी शामिल हैं। यह गृह मंत्रालय का आंकड़ा है।
  • यदि उत्तराखण्ड में एन0आर0सी0 लागू होती है तो मुलसमान, बंगाली, नेपाली, वन गुज्जर, बुक्सा-थारू, खत्तावासी, भूमिहीन आदि प्रभावित होंगे।


     इसलिए मंत्री जी आपका बयान गैर जरूरी और झूठा है कि हिन्दू बंगालियों पर कोई कार्यवाही नहीं होगी। दूसरा यदि आपको राजनीति से सन्यास लेना है तो और भी बहुत से कारण हैं जिनको पूरा न कर पाने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए आप राजनीति से दूर हो सकते हैं।
मसलन-

  • आप बंगाली समाज को अपना सबसे प्रिय मानते हैं, ऐसा आप बहुत से भाषणों में कह चुके हैं। आप आठ साल से गदरपुर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस क्षेत्र में बड़ी तादात में बंगाली समाज है। उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा देने का वायदा आप कई सालों से करते रहे हैं और उनसे वोट लेते रहे हैं। अब तो डबल इंजन की सरकार है। आप बताओ क्यों नहीं बंगाली समाज को एस. सी. का दर्जा मिल रहा है?
  • यदि 2021 तक आप बंगाली समाज को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिला पाये तो आप राजनीति से सन्यास ले लोगे, ऐसी घोषणा कब करेंगे आप?
  • बंगाली समाज के कितने युवाओं को आपने आठ साल में रोजगार उपलब्ध कराया है, जरा संख्या बताइए?
  • कला, साहित्य, संस्कृति और अन्य क्षेत्रों में उभरती हुई कितनी प्रतिभाओं को आपने आगे बढ़ाया है, जरा संख्या बताइए?
  • बंगाली भाषा और लोक संस्कृति के लिए आपने अलग से अभी तक कोई सरकारी समिति क्यों नहीं बनायी? जिसमे बीस-तीस लाख का फंड रहे।
  • बांग्ला भाषा पढ़ाने के लिए आपने कब भर्ती निकाली, जरा बताइए?
  • बंगाली विस्थापित लोगों के प्रमाण पत्र बनने में अभी भी परेशानी आ रही है क्यों? क्यों उनके प्रमाण पत्र पर पूर्वी पाकिस्तान लिखा जा रहा है?
  • आपकी विधानसभा क्षेत्र की 80 फीसदी सड़कें उधड़ी हुई क्यों हैं?
  • मटकोटा-दिनेशपुर-गदरपुर मार्ग के घोटालेबाज अभी तक जेल क्यों नहीं गये?
  • मटकोटा मार्ग गड्ढ़ों में तबदील क्यों है?
  • आपके विधानसभा क्षेत्र के अस्पतालों में डाक्टर क्यों नहीं हैं?
  • गदरपुर में डिग्री कालेज क्यों नहीं बना?
  • दिनेशपुर जी. जी. आई. सी. में लेक्चरार क्यों नहीं हैं?
  • आपकी विधानसभा के तमाम प्राथमिक स्कूल बदहाल क्यों हैं?
  • चीनी मिल क्यों नहीं शुरू हुई?
  • गदरपुर वाईपास क्यों रूका हुआ है?
  • गदरपुर क्षेत्र में कोई नयी कम्पनी या रोजगार का स्रोत क्यों नहीं शुरू हुआ?

     माननीय शिक्षा मंत्री जी आपकी कई उपलब्धियां भी हैं, जिनका मैं सम्मान करता हूं, लेकिन ऐसे पर्याप्त कारण है जिनमें आप असफल रहे हैं। आप चाहे उपरोक्त कारणों के चलते राजनीति से सन्यास ले सकते हैं। आप कुछ करें या न करें, लेकिन जनता के बीच कम से कम झूठ न बोला करें। बुरा लगता है, लोग अब समझदार हो गये हैं। सब समझने लगे हैं।

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     वैसे मैंने देश और दुनिया के राजनीतिक इतिहास पर नजर दौड़ाने की कोशिश की। मुझे एक भी नेता ऐसा नहीं मिला जिसने बुजुर्ग होने से पहले राजनीति को नैतिकता के आधार पर अलविदा कहा हो। हां, हादसों की वजह से जरूर कुछ नेताओं ने अपने पद से इस्तीफा दिया है। लाल बहादुर शास्त्री ने 1956 में रेलमंत्री रहते महबूनगर हादसे के बाद अपने पद से इस्तीफा दिया। अम्बेडकर ने हिन्दू कोड विल न लागू होने से नाराज होकर अपने पद से त्यागपत्र दिया। और भी बहुत से उदाहरण हैं। नये नेताओं में नितिश कुमार ने अटल सरकार में 1999 में गौसाल रेल हादसे की वजह से अपना पद छोड़ दिया। 2005 में अटल बिहारी वाजपेयी ने सत्ता की राजनीति से सन्यास की घोषणा की, लेकिन वह भाजपा में सक्रिय रहे। मुझे कोई नेता ऐसा नहीं मिला जिसने समय से पहले नैतिकता के आधार पर खुद को राजनीति में फेल पाते हुए सन्यास की घोषणा की हो।
अन्त में वसीम बरेलवी की दो लाइनें…..
‘‘वो झूठ बोल रहे थे बड़े सलीके सेमैं एतबार न करता तो क्या करता।’’     आपकी उदारता मुझ पर कायम रहेगी, इसी आशा के साथ आपके जवाब की प्रतीक्षा में आपका अपना….

रूपेश कुमार सिंहपत्रकार, दिनेशपुर

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