पश्चिम बंगाल में पांच दिन (भाग – चार)

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कोलकाता यात्रा से……
भाग-4

पश्चिम बंगाल में पांच दिन

रूपेश कुमार सिंह
जितनी भीषण गर्मी, इंसानी स्वभाव उतना ही कूल। लेकिन यही गर्मी जब राजनीतिक रंग लेती है, तो कोलकाता हिंसक हो जाता है।

लोकतंत्र में आम जनता का राजनैतिक होना जरूरी होता है। लेकिन देश में लोकतंत्र को भीड़ के माफिक हांका जा रहा है। आम जनता की राजनीतिक समझदारी नगण्य है। यूं कहें कि सत्ता ने कभी आम जनता को राजनैतिक बनने ही नहीं दिया, गलत न होगा। आज के दौर में तर्क निष्प्राण है और बहस की कोई गुंजाइश राजनीति में छोड़ी नहीं गयी है। तब कोलकाता में आम जनता का प्राथमिक तौर पर ही सही, राजनीति पर बात करना, बेहतर फील कराता है। छात्र, नौजवान, महिलाएं, मजदूर, किसान, नौकरी पेशा वाले सभी लोग कुछ न कुछ पढ़ते-लिखते हैं। शाम को नुक्कड़ पर मौजूद पार्टी आफिस में लोगों का अड्डा लगता है। अड्डा मारना यहाँ की संस्कृति है। हर उम्र के लोगों का शाम को अपनी-अपनी जगह जुटना अड्डा कहलाता है। यह अड्डे पश्चिम बंगाल में राजनीतिक उठा पटक के केन्द्र भी हैं। लोकसभा चुनाव के बाद राजनीतिक पैंतरेबाजी ने यहाँ करवट ली है। 

अखबार पढ़ने का है अनोखा तरीका

भाजपा का ग्राफ बढ़ रहा है। ममता दीदी अपनी बादशाहत बरकरार रखने की जद्दोजहद में हैं। वाम दल अपनी खोई जमीन को पुनः कब्जाने की फिराक में हैं। मोहल्ले और पाड़ा के हर नुक्कड़ पर किसी न किसी पार्टी का दफ्तर आपको जरूर मिलेगा। यही दफ्तर मोहल्ले में विचारधारा का विस्तार करते हैं। अब तो आर0 एस0 एस0 की शाखाएं भी सुबह-सुबह लगने लगी हैं, हालांकि ऐसा बहुत कम जगह पर होता है। पार्टी आफिस ज्यादातर सी0 पी0 एम0 और टी0 एम0 सी0 के हैं। भाजपा और कांग्रेस के दफ्तर भी खुलने लगे हैं। दिलचस्प यह है कि सभी पार्टियों के आफिस सड़क किनारे सरकारी जगह पर अतिक्रमण करके बनाये गये हैं। प्रतिदिन शाम को पार्टी आफिस में कार्यकर्ता और नेता जुटते हैं और राजनीतिक चर्चा होती है। हर नुक्कड़ पर अखबार कार्नर बने हुए हैं। प्रतिदिन बोर्ड पर अखबार लगाया जाता है। राह चलते लोग एक बार अखबार पर नजर डालते ही हैं। न्यूज पेपर पढ़ने का यह अनोखा रिवाज है। यही बोर्ड आम जनता को राजनैतिक तौर पर जागरूक बनाते हैं।

जानना जरूरी है कि जो नेता लम्बे समय तक सी0 पी0 एम0 में रहे, वही टकराव के चलते कालान्तर में टी0 एम0 सी0 में शामिल हुए। और दोनों दलों से खिन्न नेता अब भाजपा में हैं। भाजपा के पास धन बल और सत्ता बल भरपूर है, इसलिए भी अन्य दलों की लीडरशिप टूट रही है। लेकिन आम जनता में अभी भी ममता के प्रति हमदर्दी है। वहां के लोग साम्प्रदायिकता की राजनीति को पसंद नहीं कर रहे हैं। वाम दल हाशिए पर हैं। बड़ा कारण, वाम दलों के पास युवा नेतृत्व का न होना है। वास्तव में वामपंथी राजनीति को फिलहाल पश्चिम बंगाल नकार रहा है। निकाय चुनाव व संसदीय चुनाव में ममता को हराने के लिए वाम दलों ने भाजपा का साथ दिया, यह आम कथन है। इस कारण भी वामपंथी दलों को नुकसान हो रहा है। वैसे लोगों का कहना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग-अलग हैं। विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर होगा, इसलिए भाजपा को उतना समर्थन मिलेगा जितना लोकसभा में मिला था, कहना सही नहीं होगा।

ट्रेड यूनियन पर टिकी है राजनीति

कोलकाता की राजनीति ट्रेड यूनियन, किसान-मजदूर यूनियन पर टिकी रहती है। आरोप है कि ममता ने ट्रेड यूनियन को नष्ट किया है, जिस कारण मजदूर वर्ग खासा नाराज है। दिलचस्प यह है कि टी0 एम0 सी0 और वाम दल हर कीमत पर भाजपा का विरोध करते हैं। भाजपा से दोनों में से किसी दल का तालमेल नहीं हो सकता। लेकिन यदि ममता और वाम दल मिल जायें तो भाजपा को पश्चिम बंगाल से खदेड़ा जा सकता है। यह मेरा व्यक्तिगत सुझाव है। खैर, 2021 के विधानसभा चुनावों में परिणाम चाहें जो भी हो, लेकिन इतना साफ है कि कोलकाता में उत्तर भारत से ज्यादा राजनीतिक चेतना है। देश-दुनिया पर रायशुमारी करना यहाँ की दिनचर्या है। पर्यावरण और हरियाली भी यहाँ राजनीति का हिस्सा हैं। यही कारण है कि यहाँ हर मोहल्ले में एक दो तालाब जरूर हैं। यही तालाब बैठने के अड्डे भी हैं। लोग आम तौर पर बहुत मधुर हैं, संयमित हैं, लेकिन राजनीति ही यहाँ लोगों को हिंसक और अशांत बना रही है। यह बहुत अशोभनीय है। 

क्रांतिकारी किताबों का स्टाल भी लगता था दुर्गा पूजा में

राजनीतिक हल चल पर मैं लगातार नजर बनाये हुए था। पांच दिन में मैंने लगभग दो दर्जन से ज्यादा लोगों से वहां के राजनीतिक हालात पर बात की। इनमें टेक्सी ड्राइवर, फड़ वाले, नौकरी पेशा लोग, महिलाएं, बच्चे और कुछ बुद्धिजीवि आदि शामिल हैं। हुगली में मनोज दा के भतीजे का घर है। उनका बेटा नौंवीं कक्षा का छात्र है। उसने भारतीय अर्थव्यवस्था से लेकर रूस और चीन की क्रान्ति के तौर तरीके पर हमसे बात की। एक बालक की इतनी गहरी राजनैतिक समझ, मेरी समझ से परे थी। मां घर का काम देखती है और मोदी की समर्थक है। पिता टी0एम0सी0 में हैं और पाड़ा के नेता हैं। पूरा परिवार राजनैतिक तौर पर बहुत परिपूर्ण है। गहराई में उतरें, तो पायेंगे कि सी0पी0एम0 ने लम्बे समय सत्ता में रहकर वहां लोगों को राजनैतिक तो जरूर बनाया है। और तो और दुर्गा पूजा के बड़े पांडाल में एक समय में क्रान्तिकारी किताबों के स्टाल भी लगते थे। यात्रा के पांचवें और अन्तिम दिन हमने विक्टोरिया पार्क का भ्रमण किया।

मोहब्बत के दीवानों के लिए महफूज़ है विक्टोरिया पार्क

अपनी मोहब्बत के साथ खुले आसमान के नीचे सुकून के पल गुजारना किसे अच्छा नहीं लगताऽऽऽ? आखिर सबको अपने हिस्से की जमी और आसमान तराशने का हक है। प्रेमी जोड़ों को भी अधिकार होना चाहिए कि वो अपनी इच्छाओं और रोमांच से सराबोर होकर खुले आसमान में प्यार की उड़ान भर सकें। लेकिन हमारे देश में बंद कमरे में उमड़ा प्यार ही जायज है, खुले में कुछ भी अभिव्यक्त करना जैसे जुर्म है। शुक्र है उत्तर प्रदेश की भांति कोलकाता में प्यार करने वालों को खदेड़ने के लिए एन्टी रोमियो स्क्वायड नहीं है। विक्टोरिया पार्क और स्मारक बिलकुल महफूज है मोहब्बत के दीवानों के लिए। आजादी है अपने जज्बात लबों पर लाने की।

लगभग 70 एकड़ में फैले इस पार्क में जहाँ नजर दौड़ेगी वहां रूहानियत भरे अंदाज में प्रेमी युगल बांहों में बांहें डाले, सपनों की दुनिया में, प्यार के महल बनाते हुए दिखेंगे। कोई कंधे पर झूल रहा है तो कोई बांहों में, कोई गोद में सिर रखकर बेखबर है तो कोई गले मिलकर। कुछ एक-दूसरे को कमर से पकड़कर चल रहें हैं तो कुछ पेड़ की आड़ में लबों पर लब धरे हुए हैं। कोई आमने-सामने बैठ कर बतियाने में मशगूल है तो कोई एक-दूसरे को आइसक्रीम खिला रहा है। कोई भांति भांति से फोटो खींच रहा है तो कोई तालाब के किनारे पैर पानी में डालकर बैठा है। बच्चे खेल रहे हैं, बूढ़े घास पर लोट रहे हैं। हम जैसे बहुत से बहुतों को निहार रहे हैं। स्मारक के भीतर लोगों की भीड़ है, कलाकृतियों और शिल्प को समझने वालों की नहीं, बल्कि धकाधक फोटो उतारने वालों की। कुछ विदेशी मेहमान तल्लीनता से पढ़ने में लगे हैं, इतिहास के छात्र और जानकार ऐतिहासिक पहलू खोज रहे हैं।

लार्ड कर्जन ने पूरा कराया था स्मारक

कला प्रेमी रचनात्मकता की तारीफ करने में लगे हैं। मैंने लगभग दस मिनट तक रानी विक्टोरिया की संगमरमर से बनी प्रतिमा में आंखें डालकर बहुत कुछ कल्पना करने की कोशिश की। उनकी खूबसूरती और नेतृत्व को उनकी आंखों से समझने का असफल प्रयास भी किया। खैर, सिर्फ मूर्ति से बहुत कुछ नहीं जाना जा सकता। ड्यूटी पर तैनात एक जवान ने बताया कि 1921 में यह स्मारक और पार्क पब्लिक के लिए खोला गया था। 1857 के विद्रोह के बाद शासन व्यवस्था को बनाये रखने के लिए ब्रिटिश सरकार ने रानी विक्टोरिया को भारत की बागडोर सौंपी थी। 1901 में उनकी मृत्यु के बाद लार्ड कर्जन ने इस स्मारक को उनकी याद में पूरा कराया। विक्टोरिया 1876 में भारत आयीं और 25 साल तक भारत पर ब्रिटिश हुकुमत का प्रतिनिधित्व किया। उनकी सुन्दरता के कई किस्से आज भी लोगों की जुबान पर रहते हैं। 

पूरा स्मारक सफेद संगमरमर से बना है। इसमें शिल्पकला के अनूठे रूप हैं। मुगलकालीन गुंबद और पुनर्जागरण काल की चित्रकला प्रदर्शित है। संग्रहालय में 3000 से ज्यादा वस्तुएं देखने के लिए हैं। चारों तरफ हरा भरा माहौल है। लोगों की चहल-पहल शाम तक बनी रहती है। कोई किसी को रोकने टोकने वाला नहीं है। साफ सफाई देखते ही बनती है। ऊंचाई तक पहुंचने के लिए सीढ़ी है। हाइट पर पहुंचकर डर भी लगता है और अद्भुत भी। विक्टोरिया पार्क नहीं गये तो कोलकाता क्या गये? कहावत बिलकुल सटीक बैठती है। सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक पार्क के दरवाजे आपके लिए खुले हैं। हल्की बूंदाबांदी में हमने काफी कुछ घूमने की कोशिश की लेकिन समय की बाध्यता ने हमें जल्द ही बाहर धकेल दिया।

पांच दिन में बहुत कम संभव 

मानव संस्कृति और सभ्यता के विकास में यात्राएं मील का पत्थर साबित हुईं हैं। सीखने-सिखाने का सशक्त माध्यम हैं यात्राएं। यात्राएं ही वो जरिया हैं, जिसने मानव को एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचाने में मदद की। दुनिया के नक्शे पर मौजूद तमाम देश इंसानी यात्रा की ही देन हैं। यात्राएं हर दौर में महत्वपूर्ण रही हैं। आज जब यात्राएं सुगम व सरल हो गयी हैं, तब व्यक्ति अपने से विपरीत सभ्यता व संस्कृति को जानने के लिए ज्यादा आतुर है। जीवन में हम जो भी कुछ ग्रहण करते हैं, महसूस करते हैं, वो दैनिक जीवन की यात्रा की बदौलत ही संभव है। हमें अपनी यात्राओं को विस्तार देना चाहिए। आप पायेंगे कि आपकी यात्रा के बढ़ते क्रम में आपकी समझदारी, जानकारी और ज्ञान में भी क्रमशः वृद्धि होगी। यात्राएं कई तरह की हो सकती हैं, लेकिन नये लोगों से मेल-मिलाप के साथ-साथ नयी-नयी चीजों से परिचय कराना हर यात्रा का बुनियादी मकसद होता है। पांच दिन में बहुत कम संभव था कोलकाता को ज्यादा अच्छे से समझ पाना, लेकिन जितने अनुभव मैंने जुटाये हैं, उन्हें अपने अंदाज में रखने की कोशिश मात्र है, यह यात्रा वृत्तांत। प्रतिक्रिया अवश्य दीजिएगा।
समाप्त। 
रूपेश कुमार सिंह-09412946162

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